छांव बेच आया है-क़तआत
चला शहर को तो वो गांव बेच आया है
अजब मुसाफ़िर है जो पांव बेच आया है
मकां बना लिया माँ-बाप से अलग उसने
शजर ख़रीद लिया छांव बेच आया है
-
तेरे ही साथ को सांसों का साथ कहता हूँ
तुझी को मैं, तुझी को कायनात कहता हूँ
तेरी पनाह में गुज़रे जो चंद पल मेरे
बस उन्ही लम्हों को सारी हयात कहता हूँ
-
प्यार की रोशनी से माहताब दिल हुआ
तेरी इक निगाह से बेताब दिल हुआ
हजार गुल दिल में ख़्वाबों के खिल गए
तेरी नज़दीकियों से शादाब दिल हुआ
-
पल-पल बोझल था, मगर कट गई रात
सहर के उजालों में सिमट गई रात
डरा रही थी अंधेरे के ज़ोर पर मुझे
जला जो दिले-नदीश तो छंट गई रात
-
-
रंग भरूँ शोख़ी में आज शाबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूं, होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
-
किनारों से बहुत रूठा हुआ है
कलेजा नाव का सहमा हुआ है
पटकती सर है, ये बेचैन लहरें
समंदर दर्द में डूबा हुआ है
-
चित्र साभार-गूगल
तुम कभी आओ तो
तुम कभी आओ तो
मैं घुमाऊँ तुमको
खण्डहर सी ज़िन्दगी के
उस कोने में जहाँ
अब भी पड़ीं हैं
अरमानों की अधपकी ईंटें
ख़्वाबों के अधजले टुकड़े
अहसास का बिखरा मलबा
उम्मीद का भुरभुरा गारा
तुम कभी आओ तो
मैं दिखाऊँ तुमको
खुशियों की बेरंग तस्वीरें
अश्कों का लबालब पोखर
धोखों के घने जाले
रिश्तों की चौड़ी दरारें
तुम कभी आओ तो
मैं बताऊँ तुमको
तन्हाई की अनकही बातें
आँखों में छिपे जगराते
खामोशियों के चुभते खंज़र
वीरानियों के बिखरे मंज़र
तुम कभी आओ तो
आशाओं के दीप जलायें
निराशाओं के घोर तमस में आशाओं के दीप जलायें
भावनाओं से उसे सींच कर अपनेपन का पेड़ लगायें
अभिनंदित हो जहाँ भावना और प्यार से जग सुरभित हो
राग-द्वेष से रहित हृदय में कोमलता ही स्पंदित हो
दुनिया के हर छद्म भूलकर सबको अपना मीत बनायें
आँखों में आकाश बसा हो और प्रकाशित हों सब राहें
सबको अपने गले लगाने प्रस्तुत हो हरदम ये बांहें
जो अपनी गलती पर टोके, उसको अपने पास बिठायें
अपना हो या कोई पराया, प्रेम सदा बातों में छलके
अपनी खामी पर हँस लें हम, ग़ैर के ग़म में आंसू ढलके
आओ मिलकर यही बात हम, सारी दुनिया को समझायें
*रेखचित्र-अनुप्रिया
भावनाओं से उसे सींच कर अपनेपन का पेड़ लगायें
अभिनंदित हो जहाँ भावना और प्यार से जग सुरभित हो
राग-द्वेष से रहित हृदय में कोमलता ही स्पंदित हो
दुनिया के हर छद्म भूलकर सबको अपना मीत बनायें
आँखों में आकाश बसा हो और प्रकाशित हों सब राहें
सबको अपने गले लगाने प्रस्तुत हो हरदम ये बांहें
जो अपनी गलती पर टोके, उसको अपने पास बिठायें
अपना हो या कोई पराया, प्रेम सदा बातों में छलके
अपनी खामी पर हँस लें हम, ग़ैर के ग़म में आंसू ढलके
आओ मिलकर यही बात हम, सारी दुनिया को समझायें
*रेखचित्र-अनुप्रिया
तुम्हारे ख्यालों की रिमझिम सी बारिश
कई दिन से चुप तेरी यादों के पंछी
फिर सहन-ए-दिल में चहकने लगे हैं
ख़्वाबों के मौसम भी आकर हमारी
आँखों मे फिर से महकने लगे हैं
उमंगों की सूखी नदी के किनारे
आशाओं की नाव टूटी पड़ी है
तपती हुई रेत में ज़िन्दगी की
हमारी उम्मीदों की बस्ती खड़ी है
ज़मीं देखकर दिल की तपती हुई ये
अश्क़ों के बादल बरसने लगे हैं
हर एक शाम तन्हाइयों में हमारी
मौसम तुम्हारी ही यादें जगाये
तुम्हारे ख्यालों की रिमझिम सी बारिश
मुहब्बत का मुरझाया गुलशन सजाये
पाकर के अपने ख्यालों में तुमको
अरमान दिल के मचलने लगे हैं
ज़ेहन में तो बस तुम ही तुम हो हमारे
मगर दिल को अब तुमसे निस्बत नहीं है
तुम्हें चाहते हैं बहुत अब भी लेकिन
है सच अब तुम्हारी जरूरत नहीं है
भुला दें तुम्हें या न भूलें तुम्हें हम
खुद से ही खुद अब उलझने लगे हैं
आँखों का पानी लिखता हूँ
शब्दों की ज़ुबानी लिखता हूँ
गीतों की कहानी लिखता हूँ
दर्दों के विस्तृत अम्बर में
भावों के पंक्षी उड़ते हैं
नाचें हैं शरारे उल्फ़त के
जब तार ह्रदय के जुड़ते हैं
हर सुबह से शबनम लेकर
फिर शाम सुहानी लिखता हूँ
जब दर्द से जुड़ता है रिश्ता
हर बात प्रीत से होती है
तब भावनाओं के धागे में
अश्क़ों को आँख पिरोती है
ऐसे ही अपनेपन को मैं
रिश्तों की निशानी लिखता हूँ
पानी में आँखों के भीतर
ये नमक ग़मों का घुलता है
जब नेह की होती है बारिश
तब मैल ह्रदय का धुलता है
दरिया से निर्मल जल सा मैं
आँखों का पानी लिखता हूँ
*रेखाचित्र-अनुप्रिया
*रेखाचित्र-अनुप्रिया
अनुरागों का किल्लोल कहाँ
ये सहज प्रेम से विमुख ह्रदय
क्यों अपनी गरिमा खोते हैं
समझौतों पर आधारित जो
वो रिश्ते भार ही होते हैं
क्षण-भंगुर से इस जीवन सा हम
आओ हर पल को जी लें
जो मिले घृणा से, अमृत त्यागें
और प्रेम का विष पी लें
स्वीकारें वो ही उत्प्रेरण, जो
बीज अमन के बोते हैं
आशाओं का दामन थामे
हर दुःख का मरुथल पार करें
इस व्यथित हक़ीकत की दुनिया में
सपनो को साकार करें
सुबह गए पंक्षी खा-पीकर, जो
शाम हुई घर लौटे हैं
जो ह्रदय, हीन है भावों से
उसमें निष्ठा का मोल कहाँ
उसके मानस की नदिया में
अनुरागों का किल्लोल कहाँ
है जीवित, जो दूजे दुख में
अपने एहसास भिगोते हैं
*रेखाचित्र-अनुप्रिया
संवरती रही ग़ज़ल
ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल
राहें भी रो पड़ीं मेरी तलाश देखकर
.
आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या कि हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी
.
जो आँखों से आंसू झरे, देख लेते
इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल
राहें भी रो पड़ीं मेरी तलाश देखकर
.
आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या कि हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी
.
जो आँखों से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे, देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत, बदन से परे, देख लेते
.
जब भी मेरे ज़ेह्न में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उँगलियां एहसास की लिखती रही ग़ज़ल
.
ख़िल्वत की पोशीदा पीर भेजी है
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत, बदन से परे, देख लेते
.
जब भी मेरे ज़ेह्न में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उँगलियां एहसास की लिखती रही ग़ज़ल
.
ख़िल्वत की पोशीदा पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर भेजी है
रंग मुहब्बत का थोड़ा सा भर देना
यादों की बेरंग कुछ तस्वीर भेजी है
.
उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम
नहीं आया हुई मुद्दत खुशी का मौसम
दिल कॊ बेचैन किये रहता है नदीश सदा
याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम
रंग मुहब्बत का थोड़ा सा भर देना
यादों की बेरंग कुछ तस्वीर भेजी है
.
उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम
नहीं आया हुई मुद्दत खुशी का मौसम
दिल कॊ बेचैन किये रहता है नदीश सदा
याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम
.
सांसों की फिसलती हुई ये डोर थामकर
बेताब दिल की घड़कनों का शोर थामकर
करता हूँ इंतज़ार इसी आस में कि तुम
आओगी कभी तीरगी में भोर थामकर
.
लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो
बस एक पल तो खुद को , मेरे पास रहने दो ।
ये तय है तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो ।।
.
याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात, तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिये हम लौट आये प्यास लेकर झील से
खुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी
.
अपनी आंखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में बच्चे जैसा
मेरे अहसास को छू ले तू सयाना कर दे
.
जो मेरा था तलाश हो गया
हाँ यक़ीन था काश हो गया
मेरी आँखों में चहकता था
परिंदा ख़्वाबों का लाश हो गया
.
रंग भरूँ शोख़ी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठो का आलिंगन कर यूँ होंठो से,
हो जाए श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
बेताब दिल की घड़कनों का शोर थामकर
करता हूँ इंतज़ार इसी आस में कि तुम
आओगी कभी तीरगी में भोर थामकर
.
लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो
बस एक पल तो खुद को , मेरे पास रहने दो ।
ये तय है तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो ।।
.
याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात, तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिये हम लौट आये प्यास लेकर झील से
खुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी
.
अपनी आंखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में बच्चे जैसा
मेरे अहसास को छू ले तू सयाना कर दे
.
जो मेरा था तलाश हो गया
हाँ यक़ीन था काश हो गया
मेरी आँखों में चहकता था
परिंदा ख़्वाबों का लाश हो गया
.
रंग भरूँ शोख़ी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठो का आलिंगन कर यूँ होंठो से,
हो जाए श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
*रेखाचित्र-अनुप्रिया
दर्द कोई बोलता हुआ
ये तेरी जुस्तजू से मुझे तज़ुर्बा हुआ
मंज़िल हुई मेरी न मेरा रास्ता हुआ
खुशियों को कहीं भी न कभी रास आऊँ मैं
हाँ सल्तनत में दर्द की ये फैसला हुआ
मिट ना सकेगा ये किसी सूरत भी अब कभी
नज़दीकियों के दरम्यान जो फासला हुआ
जब से खँगालने चले तहखाने नींद के
अश्क़ों की बगावत में ख़्वाब था डरा हुआ
अक्सर ये सोचता हूँ क्या है मेरा वज़ूद
मैं एक अजनबी से बदन में पड़ा हुआ
थी ज़िंदगी की कश्मकश कि होश गुम गए
कहते हैं लोग उसको कि वो सिरफिरा हुआ
है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
मजबूरियों ने मेरी न छोड़ा मुझे कहीं
मत पूछना ये तुझसे मैं कैसे जुदा हुआ
अब थम गया नदीश तेरी ख़िल्वतों का शोर
हाँ मिल गया है दर्द कोई बोलता हुआ
मंज़िल हुई मेरी न मेरा रास्ता हुआ
खुशियों को कहीं भी न कभी रास आऊँ मैं
हाँ सल्तनत में दर्द की ये फैसला हुआ
मिट ना सकेगा ये किसी सूरत भी अब कभी
नज़दीकियों के दरम्यान जो फासला हुआ
जब से खँगालने चले तहखाने नींद के
अश्क़ों की बगावत में ख़्वाब था डरा हुआ
अक्सर ये सोचता हूँ क्या है मेरा वज़ूद
मैं एक अजनबी से बदन में पड़ा हुआ
थी ज़िंदगी की कश्मकश कि होश गुम गए
कहते हैं लोग उसको कि वो सिरफिरा हुआ
है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
मजबूरियों ने मेरी न छोड़ा मुझे कहीं
मत पूछना ये तुझसे मैं कैसे जुदा हुआ
अब थम गया नदीश तेरी ख़िल्वतों का शोर
हाँ मिल गया है दर्द कोई बोलता हुआ
रेखाचित्र-अनुप्रिया
समय वही क्यों दिखलाता है
व्याकुल हो जब भी मन मेरा
तब-तब गीत नया गाता है
आँखों में इक सपन सलोना
चुपके-चुपके आ जाता है
जोड़-जोड़ के तिनका-तिनका
नन्हीं चिड़िया नीड़ बनती
मिलकर बेबस-बेकस चीटी
इक ताकतवर भीड़ बनती
छोटी-छोटी खुशियाँ जी लो
यही तो जीवन कहलाता है
मुक्तक
●
उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम
नहीं आया, हुई मुद्दत खुशी का मौसम
दिल को बेचैन किये रहता है नदीश सदा
याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम
●
प्यार की रोशनी से माहताब दिल हुआ
तेरी एक निगाह से बेताब दिल हुआ
हज़ार गुल दिल मे ख़्वाबों के खिल गए
तेरी नज़दीकियों से शादाब दिल हुआ
●
पल-पल बोझल था मगर कट गई रात
सहर के उजालों में सिमट गई रात
डरा रही थी अंधेरे के जोर पर मुझे
जला जो दिले-नदीश तो छंट गई रात
●
ये करिश्मा मोहब्बत में होते देखा
लब पे हँसी आँख को रोते देखा
गुजरे है मंज़र भी अजब आँखों से
साहिल को कश्तियां डुबोते देखा
●
पानी से है बिल्कुल खाली सूरत
लोग लिये फिरते हैं जाली सूरत
खाते हैं अक्सर फ़रेब चेहरे से
देखकर सब ये भोली-भाली सूरत
●
तेरे ही साथ को साँसों का साथ कहता हूँ
तुझी को 'मैं' तुझी को कायनात कहता हूँ
तेरी पनाह में गुजरे जो चंद पल मेरे
बस उन्हीं लम्हों को सारी हयात कहता हूँ
●
उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम
नहीं आया, हुई मुद्दत खुशी का मौसम
दिल को बेचैन किये रहता है नदीश सदा
याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम
●
प्यार की रोशनी से माहताब दिल हुआ
तेरी एक निगाह से बेताब दिल हुआ
हज़ार गुल दिल मे ख़्वाबों के खिल गए
तेरी नज़दीकियों से शादाब दिल हुआ
●
पल-पल बोझल था मगर कट गई रात
सहर के उजालों में सिमट गई रात
डरा रही थी अंधेरे के जोर पर मुझे
जला जो दिले-नदीश तो छंट गई रात
●
ये करिश्मा मोहब्बत में होते देखा
लब पे हँसी आँख को रोते देखा
गुजरे है मंज़र भी अजब आँखों से
साहिल को कश्तियां डुबोते देखा
●
पानी से है बिल्कुल खाली सूरत
लोग लिये फिरते हैं जाली सूरत
खाते हैं अक्सर फ़रेब चेहरे से
देखकर सब ये भोली-भाली सूरत
●
तेरे ही साथ को साँसों का साथ कहता हूँ
तुझी को 'मैं' तुझी को कायनात कहता हूँ
तेरी पनाह में गुजरे जो चंद पल मेरे
बस उन्हीं लम्हों को सारी हयात कहता हूँ
●
रेखाचित्र-अनुप्रिया
संवर जाने दे
अपनी आँखों के आईने में संवर जाने दे
मुझे समेट ले आकर या बिखर जाने दे
मेरी नहीं है तो ये कह दे ज़िन्दगी मुझसे
चंद सांसें करूँगा क्या मुझे मर जाने दे
दर्द ही दर्द की दवा है लोग कहते हैं
दर्द कोई नया जिगर से गुजर जाने दे
यूँ नहीं होता है इसरार से हमराह कोई
गुजर जायेगा तनहा ये सफ़र जाने दे
नदीश आएगा कभी तो हमसफ़र तेरा
जहाँ भी जाये मुन्तज़िर ये नज़र जाने दे
चित्र साभार-गूगल
ज़िस्म की खराश देखकर
ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल
राहें भी रो पड़ीं मेरी तलाश देखकर
मुरझाता नहीं कभी
आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या कि हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी
★★★
★★★
ज़ख्म-ए-दिल मेरा मुस्कुराने लगा
वार जब भी तेरा याद आने लगा
ज़ख्म-ए-दिल मेरा मुस्कुराने लगा
लाखों दर्द अपने दिल मे छिपाये हुए
अपने चेहरे पे खुशियां सजाये हुए
खो गया मैं रिवाजों की इस भीड़ में
और खुद से ही खुद को छिपाने लगा
ज़ख्म ख्वाबों के रिसते रहे रातभर
दर्द कदमों पे बिछते रहे रातभर
तेरे वादों के जख्मों पे फिर मैं सनम
तेरी यादों का मरहम लगाने लगा
धूप खिलवत की तन को भिगोती रही
चाहतें रात भर मेरी रोती रही
फिर भी पतवार उम्मीद की थामकर
सब्र की धार मैं आजमाने लगा
हर खुशी को क्यूँ मुझसे ही तकरार था
क्यूँ निशाने पे ग़म के मैं हर बार था
जब भी, जो भी रुचा छिन गया मुझसे वो
जो मेरा था मुझे मुंह चिढ़ाने लगा
तनहा रहा है
वफ़ा का फिर सिला धोखा रहा है
बस अपना तो यही किस्सा रहा है
उन्ही जालों में खुद ही फंस गया अब
जिन्हें रिश्तों से दिल बुनता रहा है
समेटूं जीस्त के सपने नज़र में
मेरा अस्तित्व तो बिखरा रहा है
बुझी आँखों में जुगनू टिमटिमाये
कोई भूला हुआ याद आ रहा है
ख्यालों में तेरे खोया है इतना
नदीश हर भीड़ में तनहा रहा है
हुए गुम क्यूँ
जो आँखों से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे, देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत, बदन से परे, देख लेते
तस्वीर भेजी है
ख़िल्वत की पोशीदा पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर भेजी है
रंग मुहब्बत का थोड़ा सा भर देना
यादों की बेरंग कुछ तस्वीर भेजी है
आँख में ठहरा हुआ
वस्ल की शब का है मंज़र आँख में ठहरा हुआ
एक सन्नाटा है सारे शहर में फैला हुआ
दोस्ती-ओ-प्यार की बातें जो की मैंने यहाँ
किस कदर जज़्बात का फिर मेरे तमाशा हुआ
क्यों मैं समझा था सभी मेरे हैं औ' सबका हूँ मैं
सोचता हूँ जाल में रिश्तों के अब उलझा हुआ
फुसफुसा कर क्या कहा जाने ख़ुशी से दर्द ने
आंसुओं के ज़िस्म का हर ज़ख्म है सहमा हुआ
रिस रही थी दर्द की बूंदें भी लफ़्ज़ों से नदीश
घर मेरे अहसास का था इस कदर भीगा हुआ
आदमी की तरह
प्यार हमने किया जिंदगी की तरह
आप हरदम मिले अजनबी की तरह
मैं भी इन्सां हूँ, इन्सान हैं आप भी
फिर क्यों मिलते नहीं आदमी की तरह
मेरे सीने में भी इक धड़कता है दिल
प्यार यूँ न करें दिल्लगी की तरह
दोस्त बन के निभाई है जिनसे वफ़ा
दोस्ती कर रहे हैं दुश्मनी की तरह
हमको कोई गिला ग़म से होता नहीं
ग़र ख़ुशी कोई मिलती ख़ुशी की तरह
आज फिर से मेरे दिल ने पाया सुकूं
सोचकर आपको शायरी की तरह
ग़म की राहों में जब भी अँधेरे बढ़े
अश्क़ बिखरे सदा चांदनी की तरह
काश दिल को तुम्हारे ये आता समझ
इश्क़ मेरा नहीं हर किसी की तरह
याद आई है जब भी तुम्हारी नदीश
तीरगी में हुई रौशनी की तरह
*चित्र साभार-गूगल
नाम पे मेरे
अपनी आंखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में बच्चे जैसा
मेरे अहसास को छू ले तू सयाना कर दे
रूठ के जाना किसी का
दूर हमने यूँ तीरगी कर ली
जला के दिल को रौशनी कर ली
दोस्ती है फ़रेब जान के ये
जो मिला उससे दुश्मनी कर ली
ज़िन्दगी कैसे रहबरी करती
मौत ने मेरी रहज़नी कर ली
इसलिए हो गए खफ़ा आंसू
सिर्फ उम्मीद-ए-ख़ुशी कर ली
गिर गए आईने की आँखों से
अक्स ने जैसे ख़ुदकुशी कर ली
रूठ के जाना किसी का ऐ नदीश
रूह ने जैसे बेरुख़ी कर ली
यूँ मुसलसल ज़िन्दगी से
यूँ मुसलसल ज़िन्दगी से मसख़री करते रहे
ज़िन्दगी भर आरज़ू-ए-ज़िन्दगी करते रहे
एक मुद्दत से हक़ीक़त में नहीं आये यहाँ
ख्वाब की गलियों में जो आवारगी करते रहे
बड़बड़ाना अक्स अपना आईने में देखकर
इस तरह ज़ाहिर वो अपनी बेबसी करते रहे
रोकने की कोशिशें तो खूब कीं पलकों ने पर
इश्क़ में पागल थे आँसू ख़ुदकुशी करते रहे
आ गया एहसास के फिर चीथड़े ओढ़े हुए
दर्द का लम्हा जिसे हम मुल्तवी करते रहे
दिल्लगी दिल की लगी में फर्क कितना है नदीश
दिल लगाया हमने जिनसे दिल्लगी करते रहे
जेवर बनाता हूँ
पलक की सीपियों में अश्क़ को गौहर बनाता हूँ
मैं तन्हाई की दुल्हन के लिए जेवर बनाता हूँ
कभी चंपा कभी जूही कभी नर्गिस की पंखुडियां
तेरे वादों को मैं तस्वीर में अक्सर बनाता हूँ
मेरी मंजिल की राहों में खड़ा है आसमां तू क्यूँ
ज़रा हट जा मैं अपने हौसले को पर बनाता हूँ
ज़ेहन में चहचहातें हैं तुम्हारी याद के पंछी
मैं जब भी सोच में कोई हसीं मंज़र बनाता हूँ
*चित्र साभार- गूगल
घटा से धूप से और चांदनी से चाहते क्या हो?
भला मायूस हो क्यूँ आशिकी से चाहते क्या हो?
अभी तो आग़ाज़ ही है फिर अभी से चाहते क्या हो?
कहाँ हर आदमी दिल चीर के तुमको दिखायेगा
बताओ यार तुम अब हर किसी से चाहते क्या हो?
फ़क़त हों आपके आँगन में ही महदूदो-जलवागर
घटा से धूप से और चांदनी से चाहते क्या हो?
वफायें रोक लेंगी तुमको मेरी, है यकीं मुझको
दिखाकर इस तरह की बेरुखी से चाहते क्या हो?
छिपा सकते हो कब तक खुद से खुद को तुम नदीश
चुराकर आँख अपनी आरसी से चाहते क्या हो?
आंसू अपनी आँख में
यूँ भी दर्द-ए-ग़ैर बंटाया जा सकता है
आंसू अपनी आँख में लाया जा सकता है
खुद को अलग करोगे कैसे, दर्द से बोलो
दाग, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता है
मेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ है
फिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता है
अश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे कहते हैं मुझसे
पलकों पर ठहरे आंसू पूछे है मुझसे
कब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
वज्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
मुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है
इतनी यादों की दौलत हो गयी इकट्ठी
अब नदीश हर वक़्त बिताया जा सकता है
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