संवरती रही ग़ज़ल

ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल
राहें भी रो पड़ीं मेरी तलाश देखकर
.
आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या कि हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी
.
जो आँखों से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी  अरे, देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत,  बदन  से  परे, देख लेते
.
जब भी मेरे ज़ेह्न में संवरती रही ग़ज़ल 
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की 
और उँगलियां एहसास की लिखती रही ग़ज़ल
.
ख़िल्वत की पोशीदा पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर भेजी है
रंग मुहब्बत का थोड़ा सा भर देना
यादों की बेरंग कुछ तस्वीर भेजी है
.
उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम
नहीं आया हुई मुद्दत खुशी का मौसम
दिल कॊ बेचैन किये रहता है नदीश सदा
याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम
.
सांसों की फिसलती हुई ये डोर थामकर
बेताब दिल की घड़कनों का शोर थामकर
करता हूँ इंतज़ार इसी आस में कि तुम
आओगी कभी तीरगी में भोर थामकर
.
लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो
बस एक पल तो खुद को , मेरे पास रहने दो ।
ये तय है तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो ।।
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याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात, तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
 इसलिये हम लौट आये प्यास लेकर झील से
खुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी
.
अपनी आंखों से मुहब्बत का बयाना कर दे 
नाम  पे  मेरे  ये  अनमोल  खज़ाना  कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में बच्चे जैसा
मेरे  अहसास को  छू  ले  तू  सयाना कर दे
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जो मेरा था तलाश हो गया
हाँ यक़ीन था काश हो गया
मेरी आँखों में चहकता था
परिंदा ख़्वाबों का लाश हो गया
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रंग भरूँ शोख़ी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठो का आलिंगन कर यूँ होंठो से,
हो जाए श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का

*रेखाचित्र-अनुप्रिया

6 comments:

  1. बहुत ख़ूब ... हर मुक्तक लाजवाब ... दाद क़बूल फ़रमाएँ ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया

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  2. बहुत खूब ,शुरु की पंक्तियाँ पढ़कर तो आँखें नम हो गयीं |

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    1. दिल की बात दिल तक पहुंची
      लेखन सार्थक हुआ
      बहुत बहुत आभार आपका

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