तन्हाई

ख़्वाब देखना तो जैसे
भूल चुकी हैं आँखें
और नींद भी मानो
अब, पहचानती ही नहीं
बस, थोड़ा सा आसरा है
इन यादों का
उन बातों का
जिसे महसूस किया है दिल ने
दूरियों के बाद भी
सिमट गई है कुछ पल में
उस मुहब्बत की ख़ुश्बू
मगर
अब सिर्फ सन्नाटा है
इतना सन्नाटा कि
उकताने लगी है
तन्हाई भी

चित्र साभार-गूगल

नासमझी




तुम सोचते हो कि
घर से निकाले गए
माँ-बाप बेघर हो जाते हैं,
नहीं, नासमझी है ये तुम्हारी,
बल्कि
माँ-बाप के चले जाने से
तुम्हारा घर ही
बेघर हो जाता है


चित्र साभार- गूगल

कुछ बूंदें तेरी यादों की



ये कैसी तन्हाई है 
कि सुनाई पड़ता है
ख़्यालों का कोलाहल
और सांसों का शोर
भाग जाना चाहता हूँ
ऐसे बियावां में
जहाँ तन्हाई हो
और सिर्फ तन्हाई
लेकिन
नाकाम हो जाती हैं
तमाम कोशिशें
क्योंकि
मैं जब भी निचोड़ता हूँ
अपनी तन्हाई को
तो टपक पड़ती है
कुछ बूंदें
तेरी यादों की

चित्र साभार- गूगल

नींद



【1】
जब भी किया नींद ने
तेरे ख़्वाबों का आलिंगन
और आँखों ने चूमा है
तेरी ख़ुश्बू के लबों को
तब मुस्कुरा उट्ठा है
मेरे ज़िस्म का रोंया रोंया

चित्र साभार- गूगल

【2】
न जाने
कितनी ही रातें गुजारी है मैंने
तेरे ख़्यालों में
उस ख़्वाब के आगोश में
जिसकी ताबीर* हो नहीं सकती
अक्सर आ बैठते हैं कुछ अश्क़
आँखों की मुंडेरों पर
मेरी तन्हाई से बातें करने
और तेरे तसव्वुर में खोई आँखें
अब चौंक जाती हैं
नींद की आहट से

*ताबीर- साकार होना

दो नज़्में


तुम्हारी
उलझी जुल्फों को
सुलझाते हुए अक्सर,
मन उलझ जाता है
सुलझी हुई जुल्फों में...

चित्र साभार- गूगल

तन्हाई में आकर अचानक
तुम्हारी याद
जगा देती है उम्मीद
तुम्हारे आ जाने की
उसी तरह,
जिस तरह
हवा के साथ आने वाली
सोंधी ख़ुश्बू
जगा देती है आस
बारिश की

आईना

आईने में देखता हूँ खुद को
और मुझे तुम नज़र आते हो
सोच में पड़ जाता हूँ
क्योंकि 
आईना पारदर्शी नहीं होता
फिर ये कैसे संभव है
सोचता हूँ फिर
तुम्हारे प्रेम में
कहीं मैं ही तो
पारदर्शी नहीं हो गया
जब भी देखता हूँ आईना
तुम ही नज़र आते हो

चित्र साभार- गूगल

तन्हाई के जंगल


तन्हाई के जंगल में 
भटकते हुए 
याद का पल
जब भीग जाता है 
अश्क़ों की बारिश में 
तब एक उम्मीद 
चुपके से आकर 
पोछ देती है 
अश्क़ों की नमी
और पहना देती है 
इंतज़ार के नये कपड़े

चित्र साभार- गूगल