जेवर बनाता हूँ

पलक की सीपियों में अश्क़ को गौहर बनाता हूँ
मैं तन्हाई की दुल्हन के लिए जेवर बनाता हूँ

कभी चंपा कभी जूही कभी नर्गिस की पंखुडियां 
तेरे  वादों  को मैं  तस्वीर  में  अक्सर  बनाता हूँ

मेरी मंजिल की राहों में खड़ा है आसमां तू क्यूँ
ज़रा हट जा मैं अपने हौसले को पर बनाता हूँ

ज़ेहन में  चहचहातें  हैं तुम्हारी  याद के  पंछी
मैं जब भी सोच में कोई हसीं मंज़र बनाता हूँ

*चित्र साभार- गूगल



2 comments:

  1. बहुत खूब लाज़वाब लिखा है लोकेश जी 👌👌👌

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    1. बेहद शुक्रिया आदरणीया

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