वफ़ा का फिर सिला धोखा रहा है
बस अपना तो यही किस्सा रहा है
उन्ही जालों में खुद ही फंस गया अब
जिन्हें रिश्तों से दिल बुनता रहा है
समेटूं जीस्त के सपने नज़र में
मेरा अस्तित्व तो बिखरा रहा है
बुझी आँखों में जुगनू टिमटिमाये
कोई भूला हुआ याद आ रहा है
ख्यालों में तेरे खोया है इतना
नदीश हर भीड़ में तनहा रहा है
अक्सर इन्सान अपने बनाये जाल में ही फंसता है ... अच्छे शेर हैं ...
ReplyDeleteदिगम्बर जी हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteआभार मीना जी
Deleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteबहुत खूब सुंदर रचना👌👌
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