समय वही क्यों दिखलाता है

व्याकुल हो जब भी मन मेरा
तब-तब गीत नया गाता है
आँखों में इक सपन सलोना 
चुपके-चुपके आ जाता है

जोड़-जोड़ के तिनका-तिनका 
नन्हीं चिड़िया नीड़ बनती
मिलकर बेबस-बेकस चीटी
इक ताकतवर भीड़ बनती
छोटी-छोटी खुशियाँ जी लो
यही तो जीवन कहलाता है

जीवन के सारे रंगों से 
भीग रहा है मेरा कण-कण
मुझे कसौटी पर रखकर ये
समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण
गड़ता है जो भी आँखों में
समय वही क्यों दिखलाता है

जाने किस पल हुआ पराया
वो भी तो मेरा अपना था 
रिश्ता था कच्चे धागों का
मगर टूटना इक सदमा था
घातों से चोटिल मेरा मन
आज बहुत ही घबराता है
रेखाचित्र-अनुप्रिया

13 comments:

  1. समय के आगे सभी नतमस्तक हैं ... वो जो चाहता है वही दिखलाता है ...

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  2. जीवन के सारे रंगों से
    भीग रहा है मेरा कण-कण
    मुझे कसौटी पर रखकर ये
    समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण

    आपकी परख और लेखनी लाजवाब है।।।।

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    1. हार्दिक आभार पुरुषोत्तम जी

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  3. छोटी छोटी खुशियाँ जी लो
    यही तो जीवन कहलाता है....
    बहुत सुन्दर....

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  4. bahut hee khoobsurat rachna...

    mere blog per ayenge to aapka abhaar hoga...
    http://swayheart.blogspot.in/2017/07/blog-post.html

    shukriya

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया

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  5. बहुत खूबसूरत कविता

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  6. समय से कौर पार पा पाया है | उसके हाथों में सारा खेल है ... अच्छी कविता

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