व्याकुल हो जब भी मन मेरा
तब-तब गीत नया गाता है
आँखों में इक सपन सलोना
चुपके-चुपके आ जाता है
जोड़-जोड़ के तिनका-तिनका
नन्हीं चिड़िया नीड़ बनती
मिलकर बेबस-बेकस चीटी
इक ताकतवर भीड़ बनती
छोटी-छोटी खुशियाँ जी लो
यही तो जीवन कहलाता है
जीवन के सारे रंगों से
भीग रहा है मेरा कण-कण
मुझे कसौटी पर रखकर ये
समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण
गड़ता है जो भी आँखों में
समय वही क्यों दिखलाता है
जाने किस पल हुआ पराया
वो भी तो मेरा अपना था
रिश्ता था कच्चे धागों का
मगर टूटना इक सदमा था
घातों से चोटिल मेरा मन
आज बहुत ही घबराता है
समय के आगे सभी नतमस्तक हैं ... वो जो चाहता है वही दिखलाता है ...
ReplyDeleteसही कहा सर
Deleteजीवन के सारे रंगों से
ReplyDeleteभीग रहा है मेरा कण-कण
मुझे कसौटी पर रखकर ये
समय परखता है क्यूँ क्षण-क्षण
आपकी परख और लेखनी लाजवाब है।।।।
हार्दिक आभार पुरुषोत्तम जी
Deleteछोटी छोटी खुशियाँ जी लो
ReplyDeleteयही तो जीवन कहलाता है....
बहुत सुन्दर....
बेहद आभार आदरणीया
Deleteलाजवाब लेखनी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deletebahut hee khoobsurat rachna...
ReplyDeletemere blog per ayenge to aapka abhaar hoga...
http://swayheart.blogspot.in/2017/07/blog-post.html
shukriya
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteसमय से कौर पार पा पाया है | उसके हाथों में सारा खेल है ... अच्छी कविता
ReplyDelete