आदमी की तरह

प्यार हमने किया जिंदगी की तरह
आप हरदम मिले अजनबी की तरह

मैं भी इन्सां हूँ, इन्सान हैं आप भी
फिर क्यों मिलते नहीं आदमी की तरह

मेरे सीने में भी इक धड़कता है दिल
प्यार यूँ न करें दिल्लगी की तरह

दोस्त बन के निभाई है जिनसे वफ़ा
दोस्ती कर रहे हैं दुश्मनी की तरह

हमको कोई गिला ग़म से होता नहीं
ग़र ख़ुशी कोई मिलती ख़ुशी की तरह

आज फिर से मेरे दिल ने पाया सुकूं
सोचकर आपको शायरी की तरह

ग़म की राहों में जब भी अँधेरे बढ़े
अश्क़ बिखरे सदा चांदनी की तरह
काश दिल को तुम्हारे ये आता समझ
इश्क़ मेरा नहीं हर किसी की तरह

याद आई है जब भी तुम्हारी नदीश
तीरगी में हुई रौशनी की तरह

*चित्र साभार-गूगल

5 comments:

  1. एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!

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  2. शुक्रिया संजय जी

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  3. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  4. बहुत शुक्रिया सर

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  5. याद आई है जब भी तुम्हारी नदीश
    तीरगी में हुई रौशनी की तरह
    बहुत ख़ूब ! सुन्दर शब्द विन्यास , भावनाओं का सही तालमेल आभार। ''एकलव्य"

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