ये सहज प्रेम से विमुख ह्रदय
क्यों अपनी गरिमा खोते हैं
समझौतों पर आधारित जो
वो रिश्ते भार ही होते हैं
क्षण-भंगुर से इस जीवन सा हम
आओ हर पल को जी लें
जो मिले घृणा से, अमृत त्यागें
और प्रेम का विष पी लें
स्वीकारें वो ही उत्प्रेरण, जो
बीज अमन के बोते हैं
आशाओं का दामन थामे
हर दुःख का मरुथल पार करें
इस व्यथित हक़ीकत की दुनिया में
सपनो को साकार करें
सुबह गए पंक्षी खा-पीकर, जो
शाम हुई घर लौटे हैं
जो ह्रदय, हीन है भावों से
उसमें निष्ठा का मोल कहाँ
उसके मानस की नदिया में
अनुरागों का किल्लोल कहाँ
है जीवित, जो दूजे दुख में
अपने एहसास भिगोते हैं
*रेखाचित्र-अनुप्रिया
बहुत ही सुंदर लोकेश जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार पुरुषोत्तम जी
Deleteबहुत आभार
ReplyDeleteजी जरूर आऊंगा
वाह..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
बहुत आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर ... जो दूसरों के दुःख से द्रवित होता है वही संवेदनशील होता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
बहुत आभार सर
Deleteजो हृदय हीन हैं भावों से
ReplyDeleteउनमें निष्ठा कामोल कहाँ..
बहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसमझौतों पर आधारित जो
वो रिश्ते भार ही होते हैं....
सच कहा लोकेश जी !
जो ह्रदय, हीन है भावों से
उसमें निष्ठा का मोल कहाँ
उसके मानस की नदिया में
अनुरागों का किल्लोल कहाँ
है जीवित, जो दूजे दुख में
अपने एहसास भिगोते हैं....
बहुत सुंदर, बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ !
बधाई लोकेश जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया
Deleteवाह! अनमोल रचना !
ReplyDelete