लोकराग
अमरबेल की तरह
दिल के शज़र की
इक शाख़ पे
इक रोज़
रख दिया था बेचैनी ने
तेरी याद का
इक टुकड़ा
और आज़
दिल के शजर की
कोई शाख़ नहीं दिखती
तेरी याद ने ढ़ाँक लिया है
अमरबेल की तरह
अब वहाँ
दिल नहीं है
सिर्फ तेरी याद है
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