कई दिन से चुप तेरी यादों के पंछी
फिर सहन-ए-दिल में चहकने लगे हैं
ख़्वाबों के मौसम भी आकर हमारी
आँखों मे फिर से महकने लगे हैं
उमंगों की सूखी नदी के किनारे
आशाओं की नाव टूटी पड़ी है
तपती हुई रेत में ज़िन्दगी की
हमारी उम्मीदों की बस्ती खड़ी है
ज़मीं देखकर दिल की तपती हुई ये
अश्क़ों के बादल बरसने लगे हैं
हर एक शाम तन्हाइयों में हमारी
मौसम तुम्हारी ही यादें जगाये
तुम्हारे ख्यालों की रिमझिम सी बारिश
मुहब्बत का मुरझाया गुलशन सजाये
पाकर के अपने ख्यालों में तुमको
अरमान दिल के मचलने लगे हैं
ज़ेहन में तो बस तुम ही तुम हो हमारे
मगर दिल को अब तुमसे निस्बत नहीं है
तुम्हें चाहते हैं बहुत अब भी लेकिन
है सच अब तुम्हारी जरूरत नहीं है
भुला दें तुम्हें या न भूलें तुम्हें हम
खुद से ही खुद अब उलझने लगे हैं
बहुत सुंदर रचना लोकेश जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
DeleteNice post
ReplyDeleteVery nice post .
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आदरणीया
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