आशाओं के दीप जलायें

निराशाओं के घोर तमस में आशाओं के दीप जलायें
भावनाओं से उसे सींच कर अपनेपन का पेड़ लगायें

अभिनंदित हो जहाँ भावना और प्यार से जग सुरभित हो
राग-द्वेष से रहित हृदय में कोमलता ही स्पंदित हो
दुनिया के हर छद्म भूलकर सबको अपना मीत बनायें
आँखों में आकाश बसा हो और प्रकाशित हों सब राहें
सबको अपने गले लगाने प्रस्तुत हो हरदम ये बांहें
जो अपनी गलती पर टोके, उसको अपने पास बिठायें

अपना हो या कोई पराया, प्रेम सदा बातों में छलके
अपनी खामी पर हँस लें हम, ग़ैर के ग़म में आंसू ढलके
आओ मिलकर यही बात हम, सारी दुनिया को समझायें
*रेखचित्र-अनुप्रिया

5 comments:

  1. आशाओं के दीप ... हर शेर नयी ताज़गी लिए ... प्रेरित करता हुआ ... बहुत लाजवाब ...

    ReplyDelete
  2. सकारात्मक रचना महोदय सुंदर👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

      Delete