तुम कभी आओ तो


तुम कभी आओ तो
मैं घुमाऊँ तुमको
खण्डहर सी ज़िन्दगी के
उस कोने में जहाँ
अब भी पड़ीं हैं
अरमानों की अधपकी ईंटें
ख़्वाबों के अधजले टुकड़े
अहसास का बिखरा मलबा
उम्मीद का भुरभुरा गारा

तुम कभी आओ तो
मैं दिखाऊँ तुमको
खुशियों की बेरंग तस्वीरें
अश्कों का लबालब पोखर
धोखों के घने जाले
रिश्तों की चौड़ी दरारें

तुम कभी आओ तो
मैं बताऊँ तुमको
तन्हाई की अनकही बातें
आँखों में छिपे जगराते
खामोशियों के चुभते खंज़र
वीरानियों के बिखरे मंज़र
तुम कभी आओ तो



*रेखाचित्र-अनुप्रिया

6 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति लोकेश जी

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  2. बहुत खूब ... कलेजा बड़ा कर के आना होगा उन्हें ... दिल का दर्द देखना आसान कहाँ होगा ...

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  3. बेहद मर्मस्पर्शी रचना ...,

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    1. बेहद आभार आदरणीया

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