घर बनाने में

न तारे, चाँद, गुलशन औ' अम्बर बनाने में
जरूरी जिस कदर है सावधानी घर बनाने में

अचानक अश्क़ टपके और बच गई आबरू वरना
कसर छोड़ी न थी उसने मुझे पत्थर बनाने में

मैं सारी उम्र जिनके वास्ते चुन-चुन के लाया गुल
वो ही मसरूफ़ थे मेरे लिए खंज़र बनाने में

चित्र साभार- गूगल

सुबकते रहते हैं


याद से बारहा तेरी उलझते रहते हैं
सिमटते रहते हैं या फिर बिखरते रहते हैं

तेरा ख़याल भी छू ले अगर ज़ेहन को मेरे
रात दिन दोपहर हम तो महकते रहते हैं

इसलिये ही बनी रहती है नमी आँखों में
ख़्वाब कुछ छुपके पलक में सुबकते रहते हैं

चित्र साभार- गूगल

ज़िन्दगी की किताब के पन्ने

आँखों में 
फिर चमकने लगे हैं 
यादों के कुछ लम्हें
गूंजने लगी हैं कान में 
वो तमाम बातें 
जो कभी हमने की ही नहीं 
नज़र आई कुछ तस्वीरें 
जो वक़्त ने खींच ली होगी 
और तुम्हारा ही नाम 
पढ़ रहा था हर कहीं 
जब पलट रहा था मैं 
ज़िन्दगी की किताब के पन्ने


अमरबेल की तरह

दिल के शज़र की
इक शाख़ पे
इक रोज़
रख दिया था बेचैनी ने
तेरी याद का
इक टुकड़ा
और आज़
दिल के शजर की
कोई शाख़ नहीं दिखती
तेरी याद ने ढ़ाँक लिया है
अमरबेल की तरह
अब वहाँ
दिल नहीं है
सिर्फ तेरी याद है

इक तेरे जाने के बाद

हर शाम ग़मगीं सी
हर सुबह उनींदी सी
हर ख़्याल खोया सा
इक तेरे जाने के बाद
हर वक़्त बिखरा सा
हर अश्क़ दहका सा
एहसास भिगोया सा
इक तेरे जाने के बाद
हर दर्द महका सा
हर वक़्त तन्हा सा
हर ख़्वाब रोया सा
इक तेरे जाने के बाद
हर सांस चुभती सी
हर बात कड़वी सी
हर नाम ढ़ोया सा
इक तेरे जाने के बाद


शब्द बिखर जाते हैं

अक्सर शब्द बिखर जाते हैं
कोशिश बहुत करता हूँ, कि
शब्दों को समेट कर
कोई कविता लिखूं
पर ये हो नहीं पाता
कोशिश बहुत करता हूँ कि
एहसास समेट कर रखूं
पर ये हो नहीं पाता
तकिये पर बिखरे अश्क़ों की तरह
अक्सर शब्द बिखर जाते हैं

छांव बेच आया है-क़तआत


चला शहर को तो वो गांव बेच आया है
अजब मुसाफ़िर है जो पांव बेच आया है
मकां बना लिया माँ-बाप से अलग उसने
शजर ख़रीद लिया छांव बेच आया है
-
तेरे ही साथ को सांसों का साथ कहता हूँ
तुझी को मैं, तुझी को कायनात कहता हूँ
तेरी पनाह में गुज़रे जो चंद पल मेरे
बस उन्ही लम्हों को सारी हयात कहता हूँ
-
प्यार की रोशनी से माहताब दिल हुआ
तेरी इक निगाह से बेताब दिल हुआ
हजार गुल दिल में ख़्वाबों के खिल गए
तेरी नज़दीकियों से शादाब दिल हुआ
-
पल-पल बोझल था, मगर कट गई रात
सहर के उजालों में सिमट गई रात
डरा रही थी अंधेरे के ज़ोर पर मुझे
जला जो दिले-नदीश तो छंट गई रात
-
-
रंग भरूँ शोख़ी में आज शाबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूं, होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
-
किनारों से बहुत रूठा हुआ है
कलेजा नाव का सहमा हुआ है
पटकती सर है, ये बेचैन लहरें
समंदर दर्द में डूबा हुआ है
-
चित्र साभार-गूगल