लोकराग
छांव बेच आया है-क़तआत
चला शहर को तो वो गांव बेच आया है
अजब मुसाफ़िर है जो पांव बेच आया है
मकां बना लिया माँ-बाप से अलग उसने
शजर ख़रीद लिया छांव बेच आया है
-
तेरे ही साथ को सांसों का साथ कहता हूँ
तुझी को मैं, तुझी को कायनात कहता हूँ
तेरी पनाह में गुज़रे जो चंद पल मेरे
बस उन्ही लम्हों को सारी हयात कहता हूँ
-
प्यार की रोशनी से माहताब दिल हुआ
तेरी इक निगाह से बेताब दिल हुआ
हजार गुल दिल में ख़्वाबों के खिल गए
तेरी नज़दीकियों से शादाब दिल हुआ
-
पल-पल बोझल था, मगर कट गई रात
सहर के उजालों में सिमट गई रात
डरा रही थी अंधेरे के ज़ोर पर मुझे
जला जो दिले-नदीश तो छंट गई रात
-
-
रंग भरूँ शोख़ी में आज शाबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूं, होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
-
किनारों से बहुत रूठा हुआ है
कलेजा नाव का सहमा हुआ है
पटकती सर है, ये बेचैन लहरें
समंदर दर्द में डूबा हुआ है
-
चित्र साभार-गूगल
Subscribe to:
Posts (Atom)