हुए गुम क्यूँ


जो आँखों से आंसू झरे, देख लेते

नज़र इक मुझे भी  अरे, देख लेते

हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में

मुहब्बत,  बदन  से  परे, देख लेते




संवरती रही ग़ज़ल


जब भी मेरे ज़ेह्न में संवरती रही ग़ज़ल 

तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल

झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की 

और उँगलियां एहसास की लिखती रही ग़ज़ल

तस्वीर भेजी है


ख़िल्वत की पोशीदा पीर भेजी है
तुमको ख़्वाबों की ताबीर भेजी है
रंग मुहब्बत का थोड़ा सा भर देना
यादों की बेरंग कुछ तस्वीर भेजी है

ज़िन्दगी का मौसम


उदास-उदास सा है ज़िन्दगी का मौसम

नहीं आया हुई मुद्दत खुशी का मौसम

दिल कॊ बेचैन किये रहता है नदीश सदा

याद रह जाता है कभी-कभी का मौसम


बेताब दिल की


सांसों की फिसलती हुई ये डोर थामकर

बेताब दिल की घड़कनों का शोर थामकर

करता हूँ इंतज़ार इसी आस में कि तुम

आओगी कभी तीरगी में भोर थामकर

विश्वास रहने दो


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लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो

बस एक पल तो खुद को , मेरे पास रहने दो ।

ये तय है तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन

लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो ।।
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आँख में ठहरा हुआ

वस्ल की शब का है मंज़र आँख में ठहरा हुआ
एक सन्नाटा है सारे शहर में फैला हुआ

दोस्ती-ओ-प्यार की बातें जो की मैंने यहाँ
किस कदर जज़्बात का फिर मेरे तमाशा हुआ

क्यों मैं समझा था सभी मेरे हैं औ' सबका हूँ मैं
सोचता हूँ जाल में रिश्तों के अब उलझा हुआ


फुसफुसा कर क्या कहा जाने ख़ुशी से दर्द ने
आंसुओं के ज़िस्म का हर ज़ख्म है सहमा हुआ

रिस रही थी दर्द की बूंदें भी लफ़्ज़ों से नदीश
घर मेरे अहसास का था इस कदर भीगा हुआ