लोकराग
श्रृंगार ख़्वाबों का
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रंग भरूँ शोख़ी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठो का आलिंगन कर यूँ होंठो से,
हो जाए श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
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