लोकराग
तन्हाई
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ख़्वाब देखना तो जैसे भूल चुकी हैं आँखें और नींद भी मानो अब, पहचानती ही नहीं बस, थोड़ा सा आसरा है इन यादों का उन बातों का जि...
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नासमझी
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तुम सोचते हो कि घर से निकाले गए माँ-बाप बेघर हो जाते हैं, नहीं, नासमझी है ये तुम्हारी, बल्कि माँ-बाप के चले जाने से तुम्हारा...
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कुछ बूंदें तेरी यादों की
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ये कैसी तन्हाई है कि सुनाई पड़ता है ख़्यालों का कोलाहल और सांसों का शोर भाग जाना चाहता हूँ ऐसे बियावां में जहाँ तन्हाई हो ...
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नींद
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【1】 जब भी किया नींद ने तेरे ख़्वाबों का आलिंगन और आँखों ने चूमा है तेरी ख़ुश्बू के लबों को तब मुस्कुरा उट्ठा है मेरे ज़िस्म का रोंया...
दो नज़्में
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तुम्हारी उलझी जुल्फों को सुलझाते हुए अक्सर, मन उलझ जाता है सुलझी हुई जुल्फों में... चित्र साभार- गूगल तन्हाई में आकर अचानक...
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आईना
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आईने में देखता हूँ खुद को और मुझे तुम नज़र आते हो सोच में पड़ जाता हूँ क्योंकि आईना पारदर्शी नहीं होता फिर ये कैसे संभव है स...
तन्हाई के जंगल
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तन्हाई के जंगल में भटकते हुए याद का पल जब भीग जाता है अश्क़ों की बारिश में तब एक उम्मीद चुपके से आकर पोछ देती है ...
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