कुछ बूंदें तेरी यादों की



ये कैसी तन्हाई है 
कि सुनाई पड़ता है
ख़्यालों का कोलाहल
और सांसों का शोर
भाग जाना चाहता हूँ
ऐसे बियावां में
जहाँ तन्हाई हो
और सिर्फ तन्हाई
लेकिन
नाकाम हो जाती हैं
तमाम कोशिशें
क्योंकि
मैं जब भी निचोड़ता हूँ
अपनी तन्हाई को
तो टपक पड़ती है
कुछ बूंदें
तेरी यादों की

चित्र साभार- गूगल

3 comments:

  1. बेहतरीन और लाजवाब अभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत खुब लोकेश जी। तन्हाई में यादें बहुत शोर करती हैं

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