एहसास की डोलची

दिल के कमरे में अब
पसर चुकी है वीरानी
ख़्वाबों की अलमारी
कब से पड़ी है खाली
उम्मीदों की तस्वीरों ने
खो दिए हैं रंग अपने
आस की खिड़की भी
अब कभी नहीं खुलती
अश्क़ों की नमी से ऊग आई
एक कोने में यादों की काई
हाँ
ठसाठस भरी है दर्द से
एहसास की डोलची




तेरे इंतज़ार की बोझल आँखें
शाम ढ़लते-ढ़लते
हो जाती है ना-उम्मीद
तब
तन्हाई के बिछौने पे
तेरी यादें ओढ़कर
सो जाता हूँ
क्योंकि
कुछ ख़्वाब
इन आँखों की राह तकते हैं
चित्र साभार-गूगल

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